नई पीढ़ी का चरित्र निर्माण कैसे किया जाय ?

यह कहानी लिखने का मन आज ऐसे हुवा -


तो शुरुवात कैसे हुई ?
मैं साधारणतः टी. वी. वगैरह बहुत कम देखता हूँ।  जैसे कभी रात को डिनर करते हुए देख लिया या फिर यही सुबह सुबह ऑफिस के लिए तैयार होते होते ताजा समाचार का कोई एपिसोड देख लेता हूँ।  और फिर उसके बाद भूल भी जाता हूँ की क्या देखा था।  आज दोपहर में ऐसे ही टी वी का रिमोट मेरे हाथ लग गया जो की अक्सर मेरी श्रीमती जी के पास होता है या फिर अन्य सदस्यों के पास। तो कुछ देख लूँ ये सोच कर टी वी ऑन कर लिया।  संयोगवश उस वक़्त टी वी पर श्री अमिताभ बच्चन जी कोई शो कर रहे थे। 


टी वी का वह शो "राम नवमी" पर आधारित  था।  उसमे श्री बच्चन साहब कुछ छोटे नन्हे मुन्ने बच्चों को राम नवमी के अवसर पर श्री राम चंद्र जी की कहानी सुना रहे थे . या यूँ कहें की श्रीमद रामायण के बारे में बता रहे थे।  कोतुहलवश मैं उसी शो को देखने लगा यद्यपि घर के बाकी सदस्यों का क्रोध मुझ पर टूट पड़ा परन्तु मेरे उन्हें सही राज समझाने पर वे लोग भी उसी शो को देखने लगे।  अमिताभ जी बच्चों को रामायण के हर काण्ड के बारे में सुना रहे थे और बच्चे भी बड़े ध्यान से श्री राम चंद्र जी की कहानी को सुन रहे थे और कुछ कुछ तो बीच में अमिताभ बच्चन जी से नटखट परन्तु प्यारे प्यारे प्रश्न भी कर रहे थे।   

अब आप सभी लोग ये सोच रहे होंगे की मैंने घर वालों को ऐसा क्या राज बताया की वे लोग रिमोट छोड़ कर शो की तरफ देखने लगे ? तो आइये मैं बताता हूँ की मैंने उन्हें ऐसा क्या बताया जिस से वो शो को ध्यान से देखने लगे ? मैंने उन्हें आज की पीढ़ी का चरित्र निर्माण कैसे हों सकता है इसके बारे में बताया।  मैंने उन्हें ये बताया की जो ये अमिताभ बच्चन जी बच्चों को श्री रामचंद्र जी कि कहानी सुना रहें हैं न इसी से इन बच्चों का चरित्र निर्माण होगा। एक पल के लिए तो उनकी समझ में नहीं आया परन्तु फिर मैंने विस्तार से बताना शुरू किया ।


एक अच्छा चरित्र निर्माण क्या और कैसे होगा 

मैंने उन्हें बताया की आज की नई  पीढ़ी का चरित्र निर्माण , उनको अच्छे चरित्र के बारे में बताकर  या फिर उस अच्छे चरित्र का गुणगान कर , किया जा सकता है।  मैं क्यों इस शो को देख रहा हूँ ? क्युकी इस शो में श्री राम चंद्र जी के अच्छे चरित्र के बारे में बच्चों को बताया जा रहा है।  जब उनके कोमल मन पर श्री राम चंद्र जी का अच्छा चरित्र एक अमिट छाप छोड़ेगा तभी वो श्री राम चंद्र जी के चरित्र को अपने जीवन में ढालने का प्रयत्न करेंगे। 


यदि ठीक इसके बिपरीत यदि आप उन बच्चों को रैप सॉन्ग, मार धाड़ ,खून खराबा , बलात्कार जैसी फिल्मे दिखाएंगे या सुनाएंगे तो शत प्रतिशत कही न कही उनका कोमल मन इस दुनिया में अपने आप को  उसी रूप में ढालने की कोशिश करेगा।  अतः इस बात से यह निश्चित होता है की एक अच्छे चरित्र का निर्माण एक अच्छे चरित्र से ही हो सकता है। 


उदहारण के लिए इस शो में अमिताभ बच्चन जी बच्चों को लक्षमण रेखा का अर्थ समझा रहे थे।  उन्होंने बच्चों को बताया  कि लक्ष्मण रेखा का अर्थ है कि हम सब को अपनी-अपनी मर्यादाओं एवं  अधिकारों के क्षेत्र में रहना चाहिए। हमें कभी भी इस लक्ष्मण रेखा को पार नहीं करना है।  यदि माता-पिता ने कहा है कि हमें मजबूर एवं असहाय प्राणियों पर दया करनी चाहिए और उन्हें कभी भी दुःख या कष्ट नहीं पहुँचाना चाहिए तो यह हमारी लक्ष्मण रेखा है , हमें कभी भी इसके बाहर जाकर कार्य या ब्यवहार नहीं करना चाहिए। 


अब आप पाठक लोग ही बताइये जिस बच्चे के मन में यह लक्ष्मण रेखा का भाव जाग गया तो क्या वह कभी इसे पार करेगा ? नहीं वह कभी नहीं करेगा और यदि कभी गलती से करने का मन भी करे तो उसका अंतर्मन उसे कई बार रोकेगा और यही है एक सुनिश्चित और अच्छा चरित्र  निर्माण  की परिभाषा .

मैं धन्यवाद  देना चाहूंगा श्री अमिताभ बच्चन जी एवं उनकी पूरी टीम का जिन्होंने यह एक नेक कार्य भारत के भविष्य को संवारने में किया है।  तब कही जाकर घर वाले इस पूरे शो को देखने लगे और रिमोट मेरे ही हाथ में रहा। 

क्या हम माता पिता को यह सबक सीखना चाहिए ?
खैर यह एक बात थी टी वी सीरियल की परन्तु बहुत गहरी थी।  आजकल के माता-पिता को यह बात सोचनी चाहिए और समझनी चाहिए के उनके बच्चों का चरित्र निर्माण कैसे हो रहा है ? बचपन में अनुशासन अत्यंत आवश्यक होता है और अधिकाँश माता-पिता इसी बात को भूल जाते हैं। अधिक लाड-प्यार के चक्कर में वह भूल जाते हैं कि बच्चे का भविष्य खतरे में जा रहा है। 

उदहारण:- घर पर या कही पर भी जो काम क़ाज़ी महिलाएं होती है अपना वक़्त बचाने के लिए और बच्चे उन्हें ज्यादा तंग न करें ,यह सोच कर उन्हें मोबाइल फ़ोन पकड़ा देते हैं ताकि बच्चा मोबाइल फ़ोन में ब्यस्त रहे और माता अपने कार्य कर सके।  परन्तु माताओं को यह बात सोचनी व समझनी चाहिए की बच्चों को मोबाइल फ़ोन पकड़ने से वे बीमार हो रहे हैं और सर्वप्रथम उनकी आँखें प्रभावित हो रही हैं। 

आप अपने चारों  तरफ देख सकते हैं आजकल छोटे छोटे बच्चों के भी चश्मे लग चुके हैं और ये कार्य किया है आजकल के मोबाइल फ़ोन ने।  अब आप स्वयं ही सोचिये क्या बच्चों को मोबाइल फ़ोन पकड़ाना  ठीक है ?

हम यह नहीं कहते हैं कि बच्चों को बिलकुल भी मोबाइल फ़ोन नहीं देना चाहिए पर जब भी दें तो अपनी देख रेख में दें ।  यहाँ पर मोबाइल फ़ोन कि बात इसलिए उठी है क्यूकि यह मोबाइल फ़ोन बच्चों के चरित्र निर्माण में अहम् भूमिका निभाता है।  ये बच्चों के चरित्र में एक अच्छी पहल भी बन सकता है और एक बुरा हथियार भी जो बच्चे के चरित्र पर बुरा असर डाल सकता है।

आपका  10-15 साल के बच्चा उस मोबाइल में कब क्या देख रहा है ?आप उसकी मोनेटरिंग हमेशा नहीं कर सकते हैं और यह भी इस बात पर निर्भर करता है कि उस बच्चे का पूर्व चरित्र निर्माण कैसे हुवा है।  यदि अच्छा चरित्र निर्माण हुवा है तो वह मोबाइल फ़ोन में अपने शिक्षा सम्बन्धी या अन्य मटेरियल देखेगा परन्तु ठीक इसके विपरीत उसकी गलत राह भी हो सकती है  

माता-पिता होने के नाते हमें क्या करना है ?
कुल मिलाकर , अपने बच्चों का चरित्र निर्माण हम उन्हें अच्छे चरित्र कि कहानियां , किस्से आदि सुनाकर कर सकते हैं।  उन्हें श्री राम चंद्र जी, श्री कृष्ण, राधा रुक्मणि ,शिव-पार्वती, चंद्र शेखर आज़ाद,भगत सिंह ,शुभाष चंद्र बोस , लाल बहादुर शास्त्री जी आदि कि कहानिया या किस्से सुनाकर उनका अच्छा चरित्र निर्माण कर सकते हैं।  अब यह सब आप पर निर्भर करता है कि आप अपने बच्चे का चरित्र निर्माण उपरोक्त विषयों के किस्से सुनाकर करना चाहते हैं या फिर यो यो हन्नी सिंह सुनाकर करना चाहते हैं ? 

कहानी से शिक्षा 
आज कि इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सच में हमारी आने वाली पीढ़ी के चरित्र निर्माण में उन्हें एक अच्छे चरित्र कि पहचान कराना व उसे अपने जीवन में ढालने कि आदत डलवानी है 


मेरी कहानियां

मैं एक बहुत ही साधारण किस्म का लेखक हूँ जो अपनी अंतरात्मा से निकली हुई आवाज़ को शब्दों के माध्यम से आप तक पहुँचाता हूँ

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